आस्था |अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 553, दिनांक 09-04-2024

अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 553, दिनांक 09-04-2024
स्लोकु मर्दाना 1. कलि कलवली कामु मादु मनुआ पिवनहारु ॥ क्रोध का कटोरा, जोश से भरा, पीला अहंकार मजाल कूदे लब की पीपी होई खुआरू॥ करनि लहनि सतु गुरु सचु सारा करि सरु गुना मंदे कारी सिलु घिउ सरमु मसु अहारु। गुरुमुखी पाए नानक खड़ाई जह बिकार।1।
सलोकु मर्दाना 1 कलि कलवली कामु मदु मनुआ पिवनहारु॥ क्रोध और आवेश से भरा एक पीला अहंकार। मजलस कुदे लब की पी पी होई खुआरू ॥ करनी लहनि सातु गुडु सचु सारा करि सरु गुना मंदे कारी सिलु घिउ सरमु मसु अहारु ॥ गुरुमुखी पै नानका खड़ाई जाहि बिकार ॥1
काली = कलजुगी सुभाऊ, भगवान से अलग होने की अवस्था। कलवाली = आसवित मिट्टी। मधु = शराब। मोह=मोह से। मजलास = महल। लहनी = छाल, गुड़, पानी आदि जो मिट्टी में मिलाकर खाद में दबा दिया जाता है। सतु = सत्य। सारा = शराब. सरु = महान. मंडे = रोटी सील = अच्छा स्वभाव. सरमु = हया। अहारु = भोजन।
कलजुगी सुभाऊ (मानो) (शराब निकालने वाली) मिट्टी है; काम (मनो) शराब है और पीने वाला (मनुष्य का) मन है। (मनो) मोह से भरा हुआ क्रोध का प्याला है और (मनो) अभिमान का पान करने वाला है। कूड़ा (कचरा) प्रयोगशाला के मजालों की तरह है (जिसमें) मन (वासना की शराब) पीकर भस्म हो जाता है। अच्छे कर्म (नशा) छीन लो, सत्य को गुड़ बना दो और सच्चे नाम को उत्तम मदिरा बना दो! सद्गुण फैलाओ, अच्छे स्वभाव पर तेल लगाओ और लज्जा पर (यह सब) मांसयुक्त भोजन बनाओ! हे नानक! यह भोजन सतगुरु के सानिध्य में मिलता है और इसके सेवन से सभी विकार दूर हो जाते हैं।
कलयुगी सवभाव (जैसे) (शराब निकालना) मटकी है; काम (मनो) शराब है और उसे पीने वाला (मनुख का) मन है। मोह से भारी हुए क्रोध की (मानो) टोकरी है और अहंकार (मानो) पिलाने वाला है। कुदे लभ की (अमानो) जजलिस है (जिसमें) मन (काम की शरबत को) पप कर कुश्वर (परेशन को) है) अच्छा करना, सच बोलना अच्छा बनाना और सच्चे नाम को सर्वोत्तम शराब बनाना! सद्गुण के लिये रोटी, शीतल स्वभाव के लिये घी, लज्जा के लिये मांस (यह सब) बनाओ! हे नानक! यह खुराक सतगुरु के सामने रहने से प्राप्त होती है और इसे खाने से रोग दूर हो जाते हैं ॥1॥