अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 497

अमृत वेले हुक्मनामा श्री दरबार साहिब, अमृतसर, अंग 497, 25-08-2023
गुजरी महला 5. इस निवेदन को देखने वाला व्यक्ति दुख से भर जाता है। पारब्रह्मु जो रिदै आराध्या तिनि भौ सगु तार्या।।1।। गुर हरि बिनु को न बृथा दुखु कटै। प्रभु तजि अवर सेवकु जे होइ है तितु मनु महतु जसु घटै।1। रहना प्यार और रिश्ता परवान नहीं चढ़ा. 2
पाः = पास होना, पास होना। करो = करो, मैं करता हूँ। दुखी = दुःख से। जिनी = कौन (आदमी) रिदय = हृदय में। तिनि = वह भाऊ = भय सागरु = समुद्र 1. को एन = कोई नहीं. ब्रिथा = {दर्द} पीड़ा। तजी = छोड़कर। अवार सेवकु = किसी दूसरे का नौकर। होइ है = बन जायें टीटू = उस (कार्य) में। महतु=महिमा। जसु = सोभा। हानि = घट जाती है।1. कितु ही कामी = कितु ही कामी, किसी भी कार्य में {‘कितु’ शब्द का प्रयोग ‘हि’ क्रिया विशेषण के कारण हुआ है।” संगी=साथ। बाँछत = सम्मान ।2.
मैं जिससे भी (अपने दुःख की) बात करता हूँ, वह अपने दुःख से भरा हुआ प्रतीत होता है (वह मेरा दुःख क्या दूर करे)। जिस मनुष्य ने अपने हृदय में भगवान को भज लिया है, वही इस भय से भरे हुए संसार सागर से पार हो गया है।।1।। गुरु के अतिरिक्त कोई अन्य पक्ष (कोई भी) दुःख व पीड़ा को दूर नहीं कर सकता। (ईश्वर के प्रति सम्मान)
सिवाय इसके कि यदि आप किसी दूसरे के सेवक बन जाते हैं, तो इस कार्य की गरिमा और महिमा कम हो जाती है।1. रहना माया के कारण उत्पन्न ये साका सजना रिश्तेदार (दुख निवारण के लिए) किसी काम के नहीं हैं। भगवान का भक्त चाहे नीची जाति का ही क्यों न हो, वह ऊंचा होता है (जानिए), उसकी संगति से मनवांछित फल मिलता है।2.
कृपया जयजयकार करें!
भगवान आपका भला करे!!