अमृत वेले दा हुकमनामा सचखंड श्री हरमंदिर साहिब, अमृतसर:31-07-2024 अंग 709

अमृत वेले दा हुकमनामा सचखंड श्री हरमंदिर साहिब, अमृतसर:31-07-2024 अंग 709
श्लोक ॥ संत उधरं दयालन असरं गोपाल कीर्तनः। निर्मलं संत संगें ओट नानक परमेसुराह।। चंदन चंदु न सर्द रुति मूलि न मिटै गम॥ सीतलु थिवै नानका जपानदारो हरि नामु।2। छंद चरण कमल की ओट उधरे सगल जन॥ सुनो हे गोविंद भगवान, मन से मत डरो। तोति न आवै मुलि संच्या नामु धन ॥ संत जन सिउ संगु पये वदेइ पुन ॥ आठो पहर हरि ध्याय हरि जसु नित सन 17।
श्लोक जो संत जन गोपाल-प्रभु के कीर्तन को अपने जीवन का आधार बनाते हैं, दयाल प्रभु उन संतों को (माया की तपस्या से) बचाते हैं, वे उन संतों की संगति करके पवित्र हो जाते हैं। हे नानक! (आप भी ऐसे गुरुमुखों की संगति में रहते हुए) भगवान का हाथ पकड़ें 1. चाहे चंदन (लेपित) हो या चांदनी (रोशनी) हो, और चाहे सर्दी का मौसम हो – इन चीजों से मन की गर्मी नहीं बुझती। हे नानक! भगवान का नाम जपने से ही मनुष्य का (मन) शांत हो जाता है।2. छंद भगवान के सुन्दर चरणों का आश्रय लेने से सभी प्राणी (संसार की गर्मी से) बच जाते हैं। गोबिंद की महिमा सुनकर (भक्तों के) हृदय निर्भय हो जाते हैं। वे भगवान के नाम पर धन संचय करते हैं और उस धन में कभी कोई हानि नहीं होती है। ऐसे गुरुमुखों की संगति बहुत भाग्यशाली होती है, ये संत आठों पहर प्रभु का ध्यान करते हैं और सदैव प्रभु की वाणी सुनते हैं।
भगवान आपका भला करे!! क्या जीत है!