अमृत वेले दा हुकमनामा श्री दरबार साहिब अमृतसर, अंग 692, 06-08-2024
अमृत वेले दा हुकमनामा श्री दरबार साहिब अमृतसर, अंग 692, 06-08-2024
जो जानु भौ भक्ति कछु जानै ता कौ अचरजू कहो ॥ जिउ जलु जल मह पैसा न निकसै तिउ धुरि मिलियो जुलाहो।1। हरि के लोगा मैं तौ मति का भोरा। जौ तनु कसि तजः कबीरा रमइय कहा निहोरा।1। रहना कहतु कबीरु सुनहु रे लोई भरमि न भूलहु कोय। किआ कासि किआ उखरु मघारु रामु रिदै जौ होई 2.3.
अर्थ :-
जैसे पानी को पानी में मिलकर (फिर से) अलग नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार (कबीर) जुलाहा भी अपना अहंकार मिटाकर भगवान में विलीन हो गया है। इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है, जो भी मनुष्य भगवान के प्रेम और भगवान की भक्ति के साथ जुड़ता है (उसका भगवान के साथ एक हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है। 1. हे संतों! (लोगों के सामने) मैं विश्वास का कमल सही है (अर्थात लोग कहेंगे कि मैं कांशी छोड़ कर मगहर आ गया हूं) क्योंकि इन लोगों के विचार के अनुसार तो ध्यान से क्या लाभ? !मनुष्य को किसी भ्रम में नहीं रहना चाहिए (कि मुक्ति कांशी में है, मगहर में नहीं), यदि भगवान (नाम) हृदय में है, तो कांशी कीह और कालरथ मगहर कीह (दोनों जगह भगवान में लीन हो सकते हैं)। 2.3.
भगवान आपका भला करे!! क्या जीत है!
