अमृत वेले दा हुकमनामा श्री दरबार साहिब श्री अमृतसर, एएनजी 894, 26-जून-2024

अमृत वेले दा हुकमनामा श्री दरबार साहिब श्री अमृतसर, एएनजी 894, 26-जून-2024
रामकली महल 5॥ दयाल रक्षक कोटि भव खंडे निमख ख्याल सगल आराधना जंत। मिलि प्रभ गुर मिलि मंत 1। जीवनदाता मेरे प्रभु! पूरण परमेसुर स्वामी घात्ति घात्ति रात्रि मेरे प्रभु 1। रहना तो आपके दिमाग में क्या खराबी है? बांड पर छूट हृदय जपी प्रसन्न है। मन मह भये आनंद 2।
अरे भइया! ईश्वर सभी प्राणियों की रक्षा करने में सक्षम है, दया का स्रोत है। यदि आंख खुलने के समय भी हम इस पर ध्यान केन्द्रित कर लें तो करोड़ों जन्मों के चक्र कट जाते हैं। सभी प्राणी उसकी पूजा करते हैं। अरे भइया! गुरु से मिलकर, गुरु की शिक्षा लेकर, उस प्रभु से मिलन हो सकता है।। अरे भइया! मेरा भगवान सभी प्राणियों को उपहार देने वाला है। वह मेरा भगवान है, भगवान है, सर्वव्यापी है, हर शरीर में व्याप्त है। रहना रे मन! जिस मनुष्य ने उस ईश्वर की शरण ले ली, वह माया के बंधनों से मुक्त हो गया। परम सुख के स्वामी भगवान का हृदय में जाप करने से मन में सुख ही सुख हो जाता है।2।
भगवान आपका भला करे!! क्या जीत है!