अमृत वेले दा हुकमनामा श्री दरबार साहिब श्री अमृतसर, आंग 554, 14-06-2024

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अमृत वेले दा हुकमनामा श्री दरबार साहिब श्री अमृतसर, आंग 554, 14-06-2024

 

स्लोकू एम: 3 नानक बिनु सतगुरु अर्पण जगु अंधु है अंधे कर्म कमाइ॥ सबदै सिउ चितु न लावै जितु सुखु वसै मनि ऐ॥ तामसी लगा सदा फिरै अहिनिसि जलतु बिहाई। जो तिसु भावै सो थिया कहाना किछु न जाई।। एम: 3 सतगुरु ने कहा, ऐसा करो। गुरु द्वारा होइ साहिबु सम्मलेहु। साहिबु भ्रम की दुनिया में हमेशा मौजूद रहता है। हरि का नामु अमृतु है दारु एहु लाहु॥ सतगुरु का भाना चिति राखु संजमु सच्चा नेहु। नानक, यह भीतर की खुशी है, और मैं तुम्हें बचाऊंगा।

 

बिनु भते = बिना मिले। सच्चा = भगवान (का रूप) तामसी = तमोगुणी अर्थ। आह = दिन. निसि = रात्रि। कारी = काम। सम्मलेहु = याद रखें। उपस्थिति=भागीदारी। छौर = परदा, वह जाल जो आँखों के सामने आकर दृष्टि बंद कर देता है। चिति = मन में। संजमु = जीना। केल = आनंद, लाड़ 2.

 

 

हे नानक! गुरु से मिले बिना संसार अंधा है, अंध कर्म करता है। सतगुरु के वचनों से मन नहीं जुड़ता, जिससे हृदय में प्रसन्नता आती है। वह तमोगुण में मतवाला होकर दिन-रात भटकता रहता है और (तमोगुण में) उसकी आयु नष्ट हो जाती है। (इसके विषय में) कुछ कहा नहीं जा सकता, जो बात प्रभु को प्रसन्न करती है, वह अवश्य पूरी होती है।। सतगुरु ने आदेश दिया है (माया का बंधन काटने के लिए) यह काम (अर्थात् उपचार) करो। गुरु के दर पर जाकर (अर्थात् गुरु के चरणों में खड़े होकर) गुरु को याद करो। प्रभु सदैव विद्यमान हैं, (आँखों के सामने) भ्रम का जाल हटा दो और उनकी लौ हृदय में रखो। हरि का नाम अमर है, यह पियो पीयो। सतगुरु का भाना (विश्वास) मन में रखो और सच्चा प्रेम (रूप) धारण करो। हे नानक! (यह मदिरा) तुम्हें यहाँ (संसार में) प्रसन्न रखेगी और परलोक में (परलोक में) हरि-मिलन का आनन्द लेगी।

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