अमृत वेले दा हुकमनामा श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर, अंग 963, 23-05-2024

अमृत वेले दा हुकमनामा श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर, अंग 963, 23-05-2024
श्लोक एम 5 अमृत बानी अम्यु रसु अमृतु हरि का नौ॥ मनि तनि हृदय सिमरी हरि आठ पहर गुण गौ। उपदेशु सुनहु तुम गुरसिक्खु सच्चा इहै सुआउ॥ जन्म की सामग्री सफल है. सुख सहज अंदु घना प्रभ जप्त्या दुखु जय। नानक नाम तें उपजै दरगाह सुख पायो।। अर्थ:- अमृत बानी – गुरबाणी के माध्यम से आध्यात्मिक जीवन देना। अम्यु रसु – अमृत का स्वाद। स्तुति गाओ. सुआउ – स्वार्थ, मकसद। सामग्री—मूल्य की कोई चीज़। जनमू-मानव जीवन। भाऊ – प्रेम, स्नेह। सहज-आध्यात्मिक समभाव। अर्थ:- भगवान का नाम जल है जो आध्यात्मिक जीवन देता है, अमृत का स्वाद देता है; (हे भाई!) सतगुरु की अमृत वासना बानी के माध्यम से अपने मन, शरीर और हृदय में इस भगवान के नाम का ध्यान करें और आठ घंटे तक भगवान की स्तुति करें। हे गुरु-सिक्खो! (प्रार्थनापूर्वक) उपदेश सुनो, यही जीवन का वास्तविक उद्देश्य है। मन में (प्रभु का) प्रेम रखो, यह मानव जीवन रूपी अनमोल उपहार सफल हो जायेगा। भगवान का ध्यान करने से दुख दूर होते हैं, सुख, आध्यात्मिक स्थिरता और असीम सुख की प्राप्ति होती है। हे नानक! भगवान का नाम जपने से (इस व्यक्ति में) प्रसन्नता उत्पन्न होती है और भगवान के सान्निध्य में स्थान मिलता है।
सलोक म: 5 अमृत बानी अमिउ रसु अमृतु हरि का नौ॥ मनि तनि हिरदै सिमरी हरि आठ पहर गुण गाओ। उपदेशु सुनहु तुम गुरसिक्खु सच्चा इहै सुआउ॥ भाई रे सूखा, आसान, खुश, रोशनी से भरा, दर्द, दर्द। नानक नामु जपत सुखु उपजै दरगह पै ठौ
भावार्थ:-भगवान का नाम वह जल है जो आध्यात्मिक जीवन देता है, अमृत का स्वाद देता है; (हे भाई!) इस प्रभु के नाम को अपने मन में, अपने शरीर में, अपने हृदय में सतिगुरु के अमृत वचनों के माध्यम से स्मरण करो और दिन में आठ बार भगवान की स्तुति करो। हे गुर-सिखों! (सिफत-सलाह वाला यह) उपदेश सुनो, यही जीवन का वास्तविक लक्ष्य है। मन में (भगवान का) प्रेम टिकाई, यह मानव जीवन रूप वर्की दाती सफल होगी। भगवान से कष्ट दूर हो जाते हैं, सुख, आध्यात्मिक स्थिरता और परम सुख की प्राप्ति होती है। हे नानक
! 1